(योग को भलीभांति समझने के लिए पोस्ट को पूरा पढ़े)
By Poras Yoga,
शरीर, मन व आत्मा को एक साथ जोडना ही योग हैैं।
शब्द - प्रक्रिया और धारणा - हिन्दू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म में ध्यान प्रक्रिया से सम्बन्धित है। योग शब्द भारत से बौद्ध धर्म के साथ तिब्बत, चीन, जापान, दक्षिण पूर्व एशिया तथा श्री लंका में भी फैल गया है और इस समय सारे सभ्य जगत में लोग इससे परिचित हैं।
योग शब्द का शाब्दिक अर्थ – मिलना या जुड़ना होता हैं लेकिन अगर इसका व्यवहारिक अर्थ देखे तो यह बहुत विस्तृत विज्ञान रूप है | क्योंकि इसके सभी कर्म और क्रियाएँ मनुष्य को शारीरिक और आत्मिक रूप से पूर्ण योगी बनाती है अथवा यूँ कहे की आत्मा से परमात्मा करना योग में सिद्ध हो सकता है |
परिभाषाएं :- विभिन्न ऋषियों एवम् वेदों/शास्त्रों द्वारा योग की कुछ परिभाषा निम्नलिखित है -
१.पतंजलि योगदर्शन/योगसूत्र के अनुसार,
"योगश्चित्तवृतिनिरोध:" अर्थात चित्त की समस्त वृतियों का निरोध ही योग कहलाता है |”
योग का इतिहास -
By Poras Yoga,
शरीर, मन व आत्मा को एक साथ जोडना ही योग हैैं।
शब्द - प्रक्रिया और धारणा - हिन्दू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म में ध्यान प्रक्रिया से सम्बन्धित है। योग शब्द भारत से बौद्ध धर्म के साथ तिब्बत, चीन, जापान, दक्षिण पूर्व एशिया तथा श्री लंका में भी फैल गया है और इस समय सारे सभ्य जगत में लोग इससे परिचित हैं।
योग शब्द का शाब्दिक अर्थ – मिलना या जुड़ना होता हैं लेकिन अगर इसका व्यवहारिक अर्थ देखे तो यह बहुत विस्तृत विज्ञान रूप है | क्योंकि इसके सभी कर्म और क्रियाएँ मनुष्य को शारीरिक और आत्मिक रूप से पूर्ण योगी बनाती है अथवा यूँ कहे की आत्मा से परमात्मा करना योग में सिद्ध हो सकता है |
परिभाषाएं :- विभिन्न ऋषियों एवम् वेदों/शास्त्रों द्वारा योग की कुछ परिभाषा निम्नलिखित है -
१.पतंजलि योगदर्शन/योगसूत्र के अनुसार,
"योगश्चित्तवृतिनिरोध:" अर्थात चित्त की समस्त वृतियों का निरोध ही योग कहलाता है |”
२.श्री मद भगवदगीता के अनुसार,
"समत्वं योग उच्यते" (2/48) अथार्त सभी पदार्थो में समान भाव रखना ही योग हैं।
"योग: कर्मसु कौशलम्" (2/50) अर्थात कर्मो में कुशलता ही योग हैं।
३.सांख्य दर्शन के अनुसार,
पुरुषप्रकृत्योर्वियोगेपि योगइत्यमिधीयते।
अथार्त पुरुष एवम् प्रकृति के पार्थक्य को स्थापित कर पुरुष का स्व स्वरूप में अवस्थित होना ही योग है।
४.विष्णु पुराण के अनुसार -
"योगः संयोग इत्युक्तः जीवात्म परमात्मने"
अर्थात् जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है।
योग को भारत के स्वर्ण युग (लगभग 26000 साल पहले) की देन माना जाता है। योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत धातु 'युज' से हुई है, जिसका अर्थ व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह से मिलना होता है। योग को हिंदु धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। माना जाता है "योगसूत्र/योगदर्शन"को महर्षि पतंजलि ने 200 ई. पूर्व लिखा था। इस ग्रंथ को अब तक हजारों भाषा में लिखा जा चुका हैं।
योग हिन्दू धर्म के छह दर्शनों में से एक है। योग का ध्यान के साथ संयोजन होता है। योग बौद्ध धर्म में भी ध्यान के लिए अहम माना जाता है। योग का संबंध इस्लाम और ईसाई धर्म के साथ भी होता है।
महर्षि पतंजलि ने द्वितीय और तृतीय पाद में जिस अष्टांग योग साधना का उपदेश दिया है, उसके नाम इस प्रकार हैं-
1. यम,
2. नियम,
3. आसन,
4. प्राणायाम,
5. प्रत्याहार,
6. धारणा,
7. ध्यान और
8. समाधि।
उक्त 8 अंगों के अपने-अपने उप अंग भी हैं।
वर्तमान में योग के 3 ही अंग प्रचलन में हैं- आसन, प्राणायाम और ध्यान।
Good job..
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